दलित चिंतक और लेखक शिवकुमार खरवार "राही" एक बार अपनी नयी रचना से चर्चा में

दलित चिंतक और लेखक शिवकुमार खरवार "राही" एक बार अपनी नयी रचना से चर्चा में

अपने बेबाक लेखन और चिंतन के लिए मशहूर रचनाकार शिव कुमार खरवार "राही" ने एक बार फिर अपनी रचना से लोगो का ध्यान अपनी ओर खींचा है। 

पेश है दलित चिंतक और लेखक  शिव कुमार खरवार "राही" की नवीनतम रचना

कहीं हलचल तो मच गई।2
मुर्दों में जान तो पड़ गई।
प्रकृति तुझे शक्ति दें पंकज 
चट्टानों विच हरकत बढ़ गई।
कहीं तो हलचल मच गई।2
मूर्दो‌ में जान तो पड़ गई।
हम वक्त के दिवाने है।
ना ठौर ना ठीकानें है।
थोड़ी सी वायु मिल गई ।
घरों में दीपक भी जल गई।
ज्ञान ही जाने दीवारें फट कब जुड़ गई ।
कहीं हलचल तो मच गई।2
मुर्दों में जान तो पड़ गई।
जब सारे अपने -अपने है।
तो बेगाने कहां जाये। 
जो कर्म भरोसा छोड़ के जीता 
रिश्तों की दुहाई को माने ।
यही कर्म और यही पे पथ है राही राह में कांटे विछ गई।
कहीं तो हलचल मच गई।2
मुर्दों में जान तो पड़ गई।
विष्णु हरि गुप्त चाणक्य भी हैरान था ।
विधि का विधाता संविधान निर्माता अम्बेडकर भी परेशान था।
होइहन वहीं जो राम रची राखा।
जस करनी तस भोगऊं तातां ।
नरक जात काहें पछताता ।
जाती स्वर्ग और जाती नरक में ना जाने कब ठन गई।
कहीं तो हलचल मच गई। 2
मुर्दों में जान तो पड़ गई।


शिव कुमार खरवार राही