उत्तराखंड के चुनाव में भी दलित कार्ड चलाएगी कांग्रेस

उत्तराखंड के चुनाव में भी दलित कार्ड चलाएगी कांग्रेस

पंजाब में दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने के बाद अब कांग्रेस उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भी इस कार्ड को चल सकती है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब कांग्रेस के प्रभारी हरीश रावत ने इसके साफ संकेत दिए हैं।


पंजाब में दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाकर उत्तराखंड लौटे हरीश रावत सोमवार को लक्सर विधानसभा क्षेत्र में परिवर्तन यात्रा में संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा, मैं मां गंगा से प्रार्थना करता हूं कि मेरे जीवन भी ऐसा क्षण आए जब उत्तराखंड से एक गरीब शिल्पकार के बेटे को इस राज्य का मुख्यमंत्री बनता देख सकूं।


हम उसके लिए काम करेंगे। दलित वर्ग कितना हमारे साथ है, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्पूर्ण यह है कि उन्होंने कितने वर्षों तक कांग्रेस को सहारा देकर केंद्र व राज्यों में सत्ता में पहुंचाने का काम किया। हम प्रतिदान देंगे। अवसर मिला तो उनकी आकांक्षाओं के साथ कांग्रेस चलेगी।

जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड के 11 पर्वतीय जिलों में दलित आबादी 10.14 लाख है। जबकि तीन मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में 8.78 लाख है। सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी हरिद्वार जिले में 411274 है। 

उत्तराखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले हुए तीन विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक पर बहुजन समाज पार्टी ने भी सेंध लगाई। 2007 में 11.76 प्रतिशत वोट हासिल कर आठ, 2012 में 12.28 प्रतिशत वोट के साथ तीन सीटें बसपा ने जीती थीं। लेकिन 2017 में उसका वोट बैंक खिसक कर 7.04 प्रतिशत रह गया और उसकी सीटों का खाता भी नहीं खुल सका। यूएसनगर में भी बसपा दलित आबादी के दम पर ही चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है। 

सियासी जानकारों का मानना है कि बेशक 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दलित कार्ड से चुनावी समीकरणों को प्रभावित करने की तैयारी में हो, लेकिन उसके पास सांसद प्रदीप टम्टा के अलावा कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है। अलबत्ता कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.जीत राम और पूर्व विधायक नारायण राम आर्य सरीखे नेता हैं। एक समय कद्दावर राजनेता यशपाल आर्य कांग्रेस में बड़ा दलित चेहरा थे, लेकिन अब वह भाजपा में हैं।   TNI