मूवी रिव्यू: मेरी क्रिसमस

मूवी रिव्यू: मेरी क्रिसमस

विजय सेतुपति और कैटरीना कैफ की फिल्म "मैरी क्रिसमस" की कहानी एक ऐसी ही अंधेरी काली रात के बारे में हैं, जब दो अजनबी मारिया (कटरीना कैफ) और अल्बर्ट (विजय सेतुपति) एक दूसरे से टकराते हैं। ये भी इत्तेफाक ही है कि मारिया और अल्बर्ट की ये काली रात दुनिया के लिए साल की सबसे चमकदार क्रिसमस की रात है, जब सारा शहर जगमगा रहा है। ये शहर वो मुंबई है, जब उसे बॉम्बे कहा जाता था।

अल्बर्ट सात साल बाद अपने घर लौटा है लेकिन क्रिसमस की रात अपनी गुजरी हुई मां की याद में दुखी होने के बजाय शहर घूमने निकलता है। रेस्त्रां में अपनी बेटी और उसके टेडी बियर के साथ अकेली बैठी मारिया उससे टकराती है। हालात ऐसे बनते हैं कि अल्बर्ट उनका हमसाया बन जाता है। मारिया अपनी शादीशुदा जिंदगी में नाखुश है, तो अल्बर्ट के अतीत के भी कुछ स्याह राज हैं। रात जवां होने के साथ-साथ अल्बर्ट और मारिया की नजदीकियां भी बढ़ती हैं, दोनों एक दूसरे के हमराज बनते हैं, लेकिन तभी एक मर्डर की मिस्ट्री उनकी केमिस्ट्री पर ब्रेक लगा देती है। इससे आगे के राज जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

फिल्म के लिए उत्सुकता पहले सीन से ही बन जाती है, जब आप टॉप एंगल से आधी-आधी स्क्रीन पर दो मिक्सर ग्राइंडर एक साथ चलते हैं। एक में मसाला पिस रहा होता है, तो दूसरी में दवाइयां। ये दोनों मिक्सर ग्राइंडर अल्बर्ट और मारिया की दो अलग-अलग दुनिया के प्रतीक हैं, जो एक साथ आते हैं। लेकिन श्रीराम ने इस बार कहानी और किरदारों को स्थापित करने में काफी समय लिया है। फर्स्ट हाफ में मारिया और अल्बर्ट बड़े आराम से फिल्म देखते, शहर में टहलते, बतियाते, नाचते दिखते हैं, जिससे आपके धैर्य की परीक्षा होती है। फिर भी उनकी कहानी में उत्सुकता बनी रहती है। वहीं, स्क्रीनप्ले के लेवल पर कई सवाल अनसुलझे रह जाते हैं। मसलन, मारिया अपना प्लान खराब होने पर भी अल्बर्ट के आगे नाटक जारी क्यों रखती है? उसे अपना झूठ पकड़े जाने का डर क्यों नहीं होता?

फिल्म का हाईलाइट आखिरी का आधा घंटा है। ऐसे क्लाइमैक्स का उम्मीद आप बिल्कुल नहीं करते। निर्देशन की बात करें, तो श्रीराम की यूनिक छाप हर फ्रेम में मौजूद है। डार्क थीम, पुरानी फिल्मों के रेफरेंस (फिल्म उन्हाेंने निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत को समर्पित की है) कलर्स, छोटी-छोटी डीटेलिंग देखने लायक है। उस पर डैनियल बी जॉर्ज का बैकग्राउंड स्कोर और मधु नीलकंदन का कैमरा नॉस्टैल्जिया के साथ-साथ जरूरी सस्पेंस बनाए रखता है। प्रीतम के गाने मौजूं हैं, पर याद नहीं रहते। रही बात एक्टिंग की, तो विजय सेतुपति और कटरीना कैफ दोनों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। विजय अपनी मासूमियत से मोह लेते हैं, पर कटरीना को इस किरदार के लिए अपने एक्सप्रेशन पर और मेहनत करने की जरूरत थी। फिर भी जीरो के बाद यह उनकी एक और अच्छी परफॉर्मेंस कही जाएगी। सपोर्टिंग कलाकारों में संजय कपूर, विनय पाठक, अश्विनी कालसेकर, टीनू आनंद छोटी भूमिकाओं में भी याद रहते हैं।

कुल मिलाकर, एक लीक से हटकर थ्रिलर का मजा लेना हो तो यह फिल्म देख सकते हैं।